कुशासन के घेरे में यूपी

हावत है कि अगर सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते, लेकिन अगर वही भूला दो साल बाद घर लौटे तो उसे क्या कहेंगे...कुछ इसी दौर से गुजर रही है उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार... 2012 के विधानसभा में पूर्ण स्पष्ट बहुमत से सत्ता में आई सपा सरकार ने अपने बदहाल नेतृत्व का परिणाम 2014 लोकसभा में देख लिया... पूरे प्रदेश में मिलीं मात्र 5 सीटों की हकीकत ने सपा को अपनी सच्चाई का आईना दिखा दिया... और जनता के इसी फैसले से मुंह की खा कर प्रदेश सरकार ने घोषित हुए बजट में पार्टी की वोट बैंक वाली राजनीति को सामने लाकर खड़ा कर दिया... सत्ता मे आने के बाद जनता के लिए बनाई गईं तमाम योजनाएं लैपटॉप वितरण, कन्या विद्याधन आदि को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया... हालांकि ये कोई हैरान करने की बात नहीं है क्योंकि लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टी के ही एक मंत्री ने बयान दिया था कि जब प्रदेश की जनता पार्टी को वोट नहीं दे सकती तो फिर इन तमाम योजनाओं को चलाने का क्या मतलब! इससे तो वोटबैंक की राजनीति स्पष्ट नज़र आती है...
                           अब अगर सरकार के दूसरे पहलू पर ध्यान दें तो चारो तरफ से आलोचनाओं से घिरी चल रही सपा सरकार को अब अपनी खामियां साफ नजर आ रहीं हैं... प्रदेश भर में फैले जंगलराज से तो सरकार की नाकामी साफ दिख रही है... बदायूं में हुए रेप और मर्डर कांड के बाद से तो प्रदेश में जैसे रेप जैसे अमानवीय अपराध की तो बाढ़ आ गई है... शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता हो जिस दिन किसी की बहन तो किसी की बेटी की अस्मत न लुटती हो... और अब तो अपराधियों के हौसले इतने बुलंद है कि रेप के बाद मार के लटकाने या फिर जिंदा जलाने की हैवानियत बढ़ती जा रही है... मानवीय मूल्यों की इतिश्री होती जा रही है... और जब इन घटनाओं पर प्रदेश सरकार को घेरा जा रहा है तो सरकार के ही मंत्री उल्टा मीडिया और विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगाते हैं...    

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