देश की सत्ता बदल
चुकी है, एक नई सरकार से जनता मुखातिब है और नई सरकार के कार्यकाल को एक महीना पूरा
हो चुका है। नई सरकार यानि मोदी से उम्मीदें लगाए बैठी जनता ने अपना उग्र रूप
दिखाना शुरू कर दिया है, कारण है रेल किराए में हुई बढ़ोत्तरी और गैस के दामों में
बढ़ोत्तरी की संभावना। रेल किराए के बढ़े
दामों पर विपक्ष ने मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया। सियासी तेवरों ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया
है। विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए लेकिन इससे
ज्यादा आश्चर्य की बात ये है कि जो जनता चुनाव के वक्त या यूं कहें हमेशा से मोदी
की शान में कसीदे गढ़ती रही वही अब विरोध करनें में भी आगे आ रही है।
लोकसभा में बीजेपी को मिले जनादेश से एक बात तो
साफ ही थी कि मोदी उम्मीदों का आईना बनकर केंद्र में आए लेकिन समझ से परे है कि
जनता इतनी जल्दी उतावली क्यों हो रही है। सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में रातों-रात
तो स्थितियां नहीं बदल सकतीं। कुछ वक्त तो
लगना स्वाभाविक बात है या फिर हम ये समझे कि मोदी के हाथ में अलादीन का चिराग या
फिर जादू की छड़ी है? क्या हम ये मानने को तैयार है?
नई सरकार को कांग्रेस की गलतियों की सजा कुछ तो
भुगतनी ही पड़ेगी। जब देश ने 10 सालों के
कांग्रेस के शासन काल को झेल लिया तो कुछ वक्त तो इस सरकार को भी देना जरूरी है। बढ़ाए गए रेल किराए से भारतीय रेल को 8000 करोड़
का फायदा होगा जोकि अब तक घाटे के साए से गुजर रही है।
जाहिर सी बात है कि होने वाले इस मुनाफे से रेल
यात्रियों को सारी सुविधाए मुहैया कराईं जाएंगीं, लेकिन कुछ वक्त तो लगेगा। रेल किराए में बढ़ोत्तरी भी इसी सोच से की गई
है! लेकिन लोग इस पहलू पर ध्यान देने की आवश्यकता
नहीं समझ रहे, बस मौका मिला और शुरू हो गए।
अगर इस तरह अभी से सरकार का मनोबल गिराने में जुट जाएंगे तो शायद आने वाले
वक्त में हम सपनों के आइने में देश के विकास की तस्वीर देखने से वंचित रह जाएं। सरकार बनने के अगर कुछ महीनों बाद जनता का ये
रूख दिखता तो लाजिमी था, लेकिन सिर्फ एक महीने में ही इस तरह का आक्रोश समझ से परे
है..........
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