वाह! क्या सड़क है!!

रे ये क्या! ये तो बिल्कुल ठीक हो गई!! कल तक तो यहां से गुज़रना मुश्किल था और आज वाह!!  उक्त विस्मयादिबोधक विचार उस वक्त मेरे दिमाग में कौंधा जब मैने एक टूटी हुई सड़क को चमकते देखा। दरअसल उस सड़क से मेरा रोज का आना जाना है। हर रोज धूल के गुबार उड़ा करते थे, चलते समय पैरों में पड़ी चरणपादुकाएं चीख-चीख कर कानपुर के बदहाल रास्तों की लाचारी बतातीं थी। और आज वही टूटी सड़क सज-संवर कर मेरे निकलने के इंतजार में पलकें बिछाए बैठी थी। तो इसी कारण मेरे दिमाग में ये विचार उपजा जो आपने ऊपर पढ़ा।
                                                      आपको बता दें कि इस वक्त ये हाल कानपुर महानगर की हर सड़क का है। कल तक जो सड़कें खस्ता हाल थीं आज चमक रहीं हैं। और चमकाने का सिलसिला चल दरअसल इसकी एकमात्र वजह है विधानसभा चुनाव 2017’ ! अभी तक अपनी बदहाली से बेहाल इन सड़कों के जल्दबाजी में नवीनीकरण और सुंदरीकरण की वजह है चुनाव को कानपुर में वोट पड़ने के बाद क्या फर्क पड़ेगा सड़के रहें या टूटें। नेताओं की झोली तो भर ही जाएगी वोटों से। अरे सड़कें जो चमका दीं!  जल्दबाजी में बनाईं गई ये सड़के वोट बैंक की राजनीति के तारकोल से बनीं हैं। अब देखना ये है कि ये तारकोल और पत्थर कब तक अपनी पकड़ बनाए रखते हैं। कब तक टिकेंगी ये सड़कें? एक बड़ा सवाल......

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