राजनीतिक हथकंडा: मोदी मुद्दा

सियासी महासागर अपने उफान पर है।  छह चरणों का चुनाव पूरा हो चुका है।  कुछ चरण बचे हैं साथ ही चुनावी नतीजों की तारीख नजदीक आ रही है।  सभी राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ इनके नेताओं की धड़कनें बढ़ रहीं है।  हालांकि धड़कनें बढना लाजिमी है, आखिर नेताओं का भविष्य जो तय करेेंगे ये नतीजे।  कोई सांसद बन कर अपने भाग्य पर इठलाएगा तो कोई हार का मुंह देख कर अपनी किस्मत को कोसेगा।  अब सियासत में तो रोना- हंसना बना ही रहता है और वैसे भी सियासत में भगवान सबको तो खुश नहीं रख सकते।
            इस चुनावी माहौल में आज-कल नेताओं की जुबान पर सिर्फ एक मुद्दा है। ये मुद्दा न तो विकास का है, न बेरोजगारी का और न ही महंगाई का। ये मुद्दा है 'मोदी का मुद्दा' ।  इसमें अतिशयोक्ति न होगी कि इस वक्त नेताओं की जुबान पर मोदी के लिए कड़वे बोल हैं और चेहरे पर विस्मय के भाव।  वैसे तो राजनीतिक पार्टियों के खून में एक दूसरे की आलोचना बहा करती है लेकिन इस वक्त सिर्फ और सिर्फ मोदी पर टिप्पणियां और बयानबाजी ही बह रही है।  सबका बस एक ही इरादा है कि मोदी को पीएम नहीं बनने देंगे।  क्यों सबको मोदी से इतनी चिढ़ हो रही हैं?  सभी पार्टियां मोदी पर बयानबाजी में एक जुट नजर आ रहीं हैं।  इससे एक बात तो साफ झलकती है कि इन सबके दिल में एक डर है और वो डर हैै मोदी के प्रधानमंत्री बनने का।  आखिर क्यों ये नेता और राजनीतिक पार्टियां इतनी स्वार्थी होती जा रहीं हैं कि चुनाव के वक्त भी देश के बारे में छोड़ कर अपने विरोधी को मुद्दा बनाने में जुटीं हैैं?  ये सरासर भद्दे राजनीतिक हथकंडे है जो नहीं अपनाए जाने चाहिए......

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