बचपन तो हंसते खेलते बीत गया। जब ठीक से खुद को समझना शुरू किया तब से घर से बाहर रहा। शुरूआत में सब कुछ अच्छा लगता था। कभी जिंदगी
को गंभीरता से नही लिया और लेता भी क्यों? धीरे-धीरे जिंदगी आगे बढ़ने लगी और सामने आने
लगी जिंदगी की हकीकत। कानपुर से स्नातक किया और उस वक्त तक जिंदगी को एक छोटे
बच्चे की तरह ही समझता रहा। हर चमकती हुई चीज को सोना समझता रहा। न ज्यादा सपने थे
और न ही कोई अरमान। न तो भविष्य की चिंता थी और न ही गुजरे वक्त का कोई ग़म।
फिर
ज़िंदगी ने करवट लेनी शुरू की। हालातों नें अपना रंग दिखाना शुरू किया और आने लगा
बदलाव। बदलाव मुझमें, मेरे विचारों में और जिंदगी के प्रति मेरे नज़रिए में।
पत्रकारिता के अध्ययन ने मुझे जीवन के दूसरे पहलू से अवगत कराना शुरू किया और आज
भी हर दिन कुछ नए विचारों से आमना-सामना होता है।
किसी के व्यक्तिगत जीवन में दखल
नहीं देना चाहिए चाहे वो आप के कितने ही करीब क्यों न हो। हो सकता है इसका
खामियाजा आप को ज़िंदगी भर भुगतना पड़े। कुछ परिस्थितियों में खुद को ढाल नहीं
पाया और आज पछता रहा हूं। गलती मेरी भी नहीं थी, जिस चीज की आपको उम्मीद न हो और
वो हासिल हो जाए तो हम भटक जाते हैं। आखिर हम इंसान ही तो है। ज्यादा खुशी
बर्दाश्त नहीं हुई और भटक गया जिसका मलाल मुझे आज भी है। किसी के वादों की नींव पर
सपनों के महल तैयार किए थे। लेकिन तालमेल की कमी के एक छोटे से तूफान नें सारे
महलों को गिरा दिया। शायद ये सपनों के महल कुछ कमजोर थे।
वादों
से मिली खुशी के पंखों से उड़ान भरने लगा था। उड़ान जो बहुत दूर तक जाने वाली थी।
लेकिन अफसोस! हालातों ने पंख तोड़ दिए और मैं सपनों के उस नीले आसमां से नीचे आ
गिरा। गिरा आकर टूटे विश्वास की ज़मीन पर जो मेरे लिए बेहद पथरीली हो चुकी थी,
बेहद सख्त। गिरने से मेरे अरमानों का पूरा बदन
चोटिल हो गया और आज भी उस दर्द का अहसास हो रहा है।
उन महलों को बनाने और
पंखों को फिर जोड़ने में प्रयासरत हूं, लेकिन सफलता नहीं मिल रही। साथ ही अब
जिंदगी को संवारने के प्रयास शुरू कर दिए हैं और सफलता भी मिलने लगी है, इन
प्रयासों में। खुद पर पूरा विश्वास है कि एक दिन सफलता की उस ऊंचाई पर जाऊंगा जहां
मुझे देखने के लिए लोगों को अपने सिर बहुत ऊपर उठाने पड़ेंगे। अब सोचता हूं कि एक
महल के गिरने से ज़रूरी तो नहीं कि इंसान बेघर हो जाए। सोचता हूं कि इन गिरे हुए
सपनों के महलों को हमेशा के लिए नष्ट कर दूं। अगर ज़िंदगी ने चाहा तो फिर नए सपनों
को सजाऊंगा। फिर भरूंगा उड़ान जो होगी मजबूत पंखों की, जो ले जाएगी मुझे बहुत ऊपर।
No comments:
Post a Comment