मुस्लिम वोटबैंक का रुख....

 

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है... और साथ ही तय हो रहीं है चुनावी रणनीति... इस चुनाव में क्या होगी मुस्लिम वोटों की सियासत... किस तरफ होगा इस वोटबैंक का रुख...चुनावी बिगुल बजने के साथ ही तय हो चुका है चुनावी कार्यक्रम...और इसी के साथ लोगों के जेहन में उठ रहा है एक सवाल कि लोकसभा चुनाव में क्या होगा मुसलमानों का रुख? सभी दल जानते हैं कि दिल्ली की कुर्सी तक पहुंचने के लिए मुस्लिम वोटों का रुख बहुत ही महत्वपूर्ण है। यूपी में लगभग 19 फीसदी मुस्लिम लोकसभा चुनावी समीकरण तय करेंगे। सूबे में एक तरफ जहां बीजेपी अपने उदारवादी रुख से मुसलमानों के वोटबैंक में सेंध लगा रही है, तो वहीं समाजवादी पार्टी इसे अपना परंपरागत दावा मान रही है। सत्ता संभालने के बाद से ही समाजवादी पार्टी ने मुसलमानों के लिए कई योजनाएं बनाईं, जिनमें कुछ लागू हुईं लेकिन ज्यादातर पर अमल ही नहीं किया गया। लेकिन मुज़फ्फरनगर हिंसा के बाद से प्रदेश सरकार को लेकर मुसलमान क्या सोच रखते हैं। इसका जवाब वो अपने वोट के जरिए आने वाले चुनावों में देंगे। हालांकि समाजवादी पार्टी खुद को मुसलमानों के सबसे करीब बता कर उन्हे अपने पाले में करने की लगातार कोशिश कर रही है। इस वोटबैंक को हासिल करने में कांग्रेस भी पीछे नही है। हालांकि मोदी को रोकने के लिए उसके मजबूत प्रत्याशियों के पीछे मुस्लिम भी आ सकते हैं और यही कांग्रेस की उम्मीदों का आधार है। वहीं मुस्लिम वोटों का सहारा बहुजन समाज पार्टी को भी है। पार्टी की मुखिया ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कम सीटें मिलने पर मुसलमानों को ज़िम्मेदार बताया था और यही जुमला 2012 में हार के बाद दोहराया गया। वहीं मुसलमानों की दुश्वारियों को लेकर आवाज उठा रही स्वयंसेवी संस्थाओं का कहना है कि मुसलमान हर तरफ से मायूस है। कांग्रेस के सेक्युलर, मुलायम सिंह के सोशलिस्ट और मायावती के दलित मुस्लिम गठजोड़ के स्लोगन से उसकी तरक्की नहीं हुई है। उनका कहना है कि मुसलमान अब वोट बैंक नहीं है, उसे डरा धमका कर वोट नहीं लिया जा सकता, बहरहाल लोकसभा चुनावों की तपिश के बीच मुजफ्फरनगर दंगे, नरेन्द्र मोदी की हवा और आरक्षण की सियासत के बीच कौन होगा मुसलमानों की पसंद... इसका फैसला तो 16 मई को ही होगा,,






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