सोशल मीडिया का क्रेज


                               
 

 
एक दौर था जब बैलगाढ़ी से प्रचार होता था लेकिन अब जमाना हाईटेक हो गया है। अब जमाने के साथ प्रचार भी हाईटेक है। जन के जेहन में पहुंचने के लिए राजनीति दल कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। होर्डिंग से लेकर रैलियां और भाषण सब हाईटेक हो गया है। आजकल नेता जन से संपर्क करने के लिए घर-घर जाकर चप्पलें घिसना नहीं चाहते वो घर बैठे सोशल साइट से अपने विचारों और वादों का आदान प्रदान करने लगे हैं। ये तरीका आसान तो हैं लेकिन सत्ता कतई नहीं 2014 के लोकसभा चुनावों में किस कदर प्रचार के इस आधुनिक तरीके का इस्तेमाल किया जा रहा है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक गूगल, ट्विटर और फेसबुक की आमदनी भी लोकसभा चुनाव की वजह से काफी ज्यादा बढ़ गई है। क्योंकि 2009 के मुकाबले इस बार सोशल मीडिया पर पार्टियां काफी खर्च कर रहीं हैं। ऐसोचैम की रिपोर्ट कहती है कि इस बार चुनाव की पब्लिसिटी में 400 करोड़ रुपये तक खर्च हो सकते हैं, और हों भी क्यों न चुनाव आयोग के एक अनुमान के मुताबिक 80 करोड़ वोटरों में 60 से 70 फीसदी वोटरों की पहुंच इंटरनेट तक जो है। यह सोशल मीडिया की ही चमक है कि अब लालू भी ट्वीट करने लगे हैं और इसकी दूसरी वजह ये है कि इस बार चुनावों में युवाओं की तादात बढ़ी है और युवाओं में इन साइट्स का खासा क्रेज है। बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हों या फिर आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल दोनों ही समर्थकों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ट्विटर और फेसबुक का जमकर इस्तेमाल करते हैं। राजनीतिक दल भी चुनावी मौसम में सोशल मीडिया पर अपनी बात रखना पसंद कर रहे हैं। सोशल मीडिया से प्रचार के भले ही तमाम फायदे हों लेकिन भारतीय राजनीति में प्राचार की जो परम्परा रही है जिसमें घर-घर जाकर जन से संपर्क करना ही सही था और ये उस पर आघात है और दूसरा ये कि इससे नेताओं और जनप्रतिनिधियों के बीच दूरियां भी बढ़ेंगी।


                     

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