नया राज्य, नई राय

हम भारत के 125 करोड़ लोग, 28 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों के भूभाग पर फैले। भांति-भांति की भाषाएं और भांति-भांति की बोलियों वाले इस देश की बहुरंगी संस्कृति किसी भी संप्रभु राष्ट्र को कमतर करने के लिए काफी है। जननी और जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर बताने वाली हमारी संस्कृति अपने देश, समाज और लोगों के बीच अद्भुत प्रेम और सामंजस्य की मिसाल कायम करती है।आजादी के बाद नए और छोटे रजच्यों के गठन और पुनर्गठन की जरूरत समझी गई। तब से निश्चित अंतराल पर बड़े राज्यों में से कुछ हिस्से को अलग राज्य बनाने की पहल हो रही है। हाल ही में तेलंगाना राज्य के निर्माण के फैसले ने नए राज्यों की मांग को तेज कर दिया है। दरअसल नए राज्य के गठन का मतलब किसी बड़े राज्य के किसी हिस्से विशेष को अलग करना। मुश्किल यहीं हो रही है। अपने राज्य की पहचान और अस्मिता को बांटने पर लोग गुस्से में हैं। इस मसले पर राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही सियासत इस गुस्से को शोला बनाने पर आमादा है। बेहतरी के पैमाने पर बड़े और छोटे राज्यों की अपनी अंतहीन दलीलें हैं। फिलहाल देश की संप्रभुता को अक्षुण्ण रखने के लिए धर्म, जाति, संस्कृति, बोली व भाषा के आधार पर नए राज्य के गठन को हतोत्साहित किए जाने की जरूरत है। नए राज्य का दर्जा उन्हीं को दिया जाना चाहिए जिनमें खुद के बूते पुष्पित पल्लवित होकर तरक्की की सीढि़यां चढ़ने की कूवत हो। राजनीतिक अस्थिरता की आशंका को भी पृथकता के पैमाने में शामिल किया जाना चाहिए।

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